INDIAN CONSTITUTION: भारतीय संविधान व्यापक अर्थों में एक सार्वभौमिक संविधान है। स्पष्ट कीजिये।

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भारतीय संविधान व्यापक अर्थों में एक सार्वभौमिक संविधान है। स्पष्ट कीजिये।

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारतीय संविधान की सर्वव्यापी प्रकृति को बताते हुए इसके सर्वव्यापी होने को कारणों को बताइये
  • भारतीय संविधान सभा द्वारा अन्य देशों से ली गई प्रमुख
  • विशेषताओं को बताइये।
  • संतुलित निष्कर्ष दीजिये ।

उत्तर:

‘सार्वभौमिकतावाद’ एक सर्वव्यापी अवधारणा है जिसमें ‘मानवतावाद’ को सर्वोपरि रखा जाता है एवं मानवता को राजनीतिक एवं सामाजिक संबंधों की परवाह किये बिना सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। भारतीय संविधान भी संकीर्ण राजनीतिक वास्तविकता से परे सभी के कल्याण की भावना को मूर्त रूप देने का प्रयास करता है।
अपनी प्रस्तावना में भारतीय संविधान स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के

सिद्धांतों की चर्चा करता है जो कि फ्राँसीसी क्रांति से लिये गए हैं। इसी के साथ प्रस्तावना में यह राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक न्याय की बात करता है जो कि रूसी क्रांति’ के आदर्शों को समाहित करता है। भारतीय संविधान के ये मूल्य स्वाभाविक रूप में मानव शांति एवं समृद्धि के विचार को भौगोलिक सीमाओं से अधिक वरीयता देते हैं।

भारतीय संविधान के मूल्य एवं आदर्श विश्वभर के अनेक देशों के संविधानों से लिये गए हैं। यह कई स्रोतों एवं परंपराओं को सम्मिलित करते हुए ‘सार्वभौमिकतावाद का प्रतिनिधित्व करता है। उदाहरण के लिये भारतीय संविधान पर ब्रिटिश संसदीय प्रणाली एवं 1935 के भारत शासन अधिनियम का पर्याप्त प्रभाव है। इसी के साथ नीति निदेशक तत्त्वों को आयरलैंड मूल अधिकारों एवं न्यायिक पुनरावलोकन को अमेरिकी संविधान से, लिये गए हैं। इसी के साथ कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिण अफ्रीका आदि के संविधानों से भी कई प्रक्रियाओं को लिया है।

सर्वोत्तम वैश्विक संवैधानिक पद्धतियों के एकीकरण के प्रयास में संविधान निर्माताओं ने लगभग सभी सफल लोकतंत्रों से प्रावधानों को लिया। बहरहाल संविधान निर्माताओं के इस प्रयास को “उधार का थैला” एवं “कागज एवं कैंची का कार्य” कह कर आलोचना भी हुई।

भारतीय संविधान की इसी सार्वभौमिक प्रकृति के कारण इसने औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्र हुए देशों हेतु प्रेरणादायी प्रकाश स्रोत का कार्य किया जिसने इन देशों को लोकतांत्रिक समाज के निर्माण हेतु प्रेरित किया। भारतीय संविधान का यह सार्वभौमिकतावाद ‘वसुधैव कुटंबकम्’ की प्राचीन भारतीय मान्यता को प्रतिबिंबित करता है जो कि पूरे विश्व को एक परिवार तथा मानवता को एकमात्र पुण्य मानता है।

‘सार्वभौमिकतावाद’ एक सर्वव्यापी अवधारणा है जिसमें ‘मानवतावाद’ को सर्वोपरि रखा जाता है एवं मानवता को राजनीतिक एवं सामाजिक संबंधों की परवाह किये बिना सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। भारतीय संविधान भी संकीर्ण राजनीतिक वास्तविकता से परे सभी के कल्याण की भावना को मूर्त रूप देने का प्रयास करता है।
अपनी प्रस्तावना में भारतीय संविधान स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के

सिद्धांतों की चर्चा करता है जो कि फ्राँसीसी क्रांति से लिये गए हैं। इसी के साथ प्रस्तावना में यह राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक न्याय की बात करता है जो कि रूसी क्रांति’ के आदर्शों को समाहित करता है। भारतीय संविधान के ये मूल्य स्वाभाविक रूप में मानव शांति एवं समृद्धि के विचार को भौगोलिक सीमाओं से अधिक वरीयता देते हैं।

भारतीय संविधान के मूल्य एवं आदर्श विश्वभर के अनेक देशों के संविधानों से लिये गए हैं। यह कई स्रोतों एवं परंपराओं को सम्मिलित करते हुए ‘सार्वभौमिकतावाद का प्रतिनिधित्व करता है। उदाहरण के लिये भारतीय संविधान पर ब्रिटिश संसदीय प्रणाली एवं 1935 के भारत शासन अधिनियम का पर्याप्त प्रभाव है। इसी के साथ नीति निदेशक तत्त्वों को आयरलैंड मूल अधिकारों एवं न्यायिक पुनरावलोकन को अमेरिकी संविधान से, लिये गए हैं। इसी के साथ कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिण अफ्रीका आदि के संविधानों से भी कई प्रक्रियाओं को लिया है।

सर्वोत्तम वैश्विक संवैधानिक पद्धतियों के एकीकरण के प्रयास में संविधान निर्माताओं ने लगभग सभी सफल लोकतंत्रों से प्रावधानों को लिया। बहरहाल संविधान निर्माताओं के इस प्रयास को “उधार का थैला” एवं “कागज एवं कैंची का कार्य” कह कर आलोचना भी हुई।

भारतीय संविधान की इसी सार्वभौमिक प्रकृति के कारण इसने औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्र हुए देशों हेतु प्रेरणादायी प्रकाश स्रोत का कार्य किया जिसने इन देशों को लोकतांत्रिक समाज के निर्माण हेतु प्रेरित किया। भारतीय संविधान का यह सार्वभौमिकतावाद ‘वसुधैव कुटंबकम्’ की प्राचीन भारतीय मान्यता को प्रतिबिंबित करता है जो कि पूरे विश्व को एक परिवार तथा मानवता को एकमात्र पुण्य मानता है।

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